Sunday, February 19, 2012

रविवार और छुट्टी का दिन

रविवार का दिन मिला-जुला ही रहा।घर में  छोटे-मोटे काम करवाया। बच्चों से बातचीत हुई।खाना बाहर से ही मँगाया। क्या करूँ घर में रसोई गैस ही नहीं है।
छुट्टी के दिन किचन में कुछ काम करने से  समय ही कटता है। मगर आज यह भी न हो सका।
एक अधूरी कहानी को पूरा करनी की कोशिश की।मगर अभी उसमें कुछ और समय देने की दरकार है।
समय निकला तो रात में एकबार फिर बठूँगा।    

Thursday, February 16, 2012

हमारे पास क्या है जो हम तुम्हें दे

तुम्हारे इस सवाल का क्या उत्तर दूँ
कि मैं  आखिरी बार कब खुश हुआ
कि इस दुनिया में ऐसा क्या है
जिससे मैं सबसे अधिक भयभीत होता हूँ
तुम्हीं बताओ
क्या  इन सवालों का कोई उत्तर हो सकता है
...................
क्या कहूँ कि
दुःख और सुख जब भी आते हैं एक साथ आते हैं
इसे यूँ भी समझो
कि मैं दुःख और सुख को अलग करने में यकीन नहीं रखता   
ऐसे ही  सफलता  और असफलता  भी
परस्पर अलग नहीं किए जा सकते

जिन अपनों के लिए जितना  कुछ किया  बदले में उनसे सिर्फ ताने ही मिले
ऐसे में दुःखी मन के साथ हम अपना कर्म और धर्म तो नहीं त्याग सकते .....
क्योंकि हमारे बेहतर किए का कहीं-न-कहीं कुछ अच्छे फल तो ज़रूर मिलेंगे
मगर हम हैं तो आखिर इंसान ही  न

इतना तो स्वीकारना ही पड़ेगा मेरे दोस्त... 
किसी और के लिए कुछ करने का जज्बा
अगर कम भी नहीं हुआ
तो किसी के लिए कुछ करने के दौरान
अब पहले की तरह संलिप्तता भी नहीं रही
       

नींद को रोको

अगर मुझसे प्यार है
तो थामे रखो अपनी नींद को
मेरी बाँहों में
रात को बीतने दो इस तरह जागती आँखों में