Friday, September 21, 2012

                                                           
     नदी
  
अर्पण कुमार


जटिल नहीं है
नदी की
चक्करदार,बिछलती देह
जटिल है
उसकी गोपन भाषा


मुश्किल नहीं है
नदी की केशराशि फैलाना
मुश्किल है
अपनी अधीर उँगलियों से
उसकी वेणी बनाना
धैर्यपूर्वक

पुरुषार्थ नहीं है
नदी को हासिल करना
पुरुषार्थ  है
नदी के साथ बहना
सँभालते हुए उसे
उबड़-खाबड़ पथ पर
होकर आत्मसंयत स्वयं भी

जरूरी नहीं है
नदी को चाँद कहना
जरूरी है
नदी में चाँद की तरह उतरना
गहरे,अनछुए,लिप्सारहित....
नहाते हुए
उसके जल को
अपनी रोशनी में

भ्रम नहीं है
नदी का दर्पण होना
भ्रम है 
उसमें बेमानी
अपना कोई प्रतिबिंब देखना
जिद में और बहुधा
झूठी शान में

दुष्कर नहीं है
नदी को समझना
दुष्कर है
उसे विश्वास में लेना
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Wednesday, September 19, 2012

'जानवरों को कविता की जरूरत नहीं होती।' रामचंद्र शुक्ल

आचार्य रामचंद्र शुक्ल के प्रसिद्ध निबंध 'कविता क्या है?' का अंतिम खंड.....

कविता की आवश्यकता

मनुष्य के लिए कविता इतनी प्रयोजनीय  वस्तु है कि संसार की सभ्य-असभ्य सभी जातियों में,किसी न किसी रूप में, पाई जाती है।  चाहे इतिहास न हो,विज्ञान न हो,दर्शन न हो,पर कविता  का प्रचार अवश्य  रहेगा।बात यह है कि मनुष्य अपने ही व्यापारों का ऐसा सघन और जटिल मंडल बाँधता  चला आ रहा  है जिसके भीतर बँधा-बँधा वह शेष सृष्टि के साथ अपने हृदय का संबंध भूला-सा  रहता है। इस परिस्थिति में मनुष्य को अपनी मनुष्यता खोने का डर  बराबर रहता है। इसी से अंतःप्रकृति में मनुष्यता  को समय-समय पर जगाते रहने के लिए कविता मनुष्य जाति के साथ लगी चली  आ रही है और चली रहेगी। जानवरों  को इसकी जरूरत नहीं।     

Tuesday, September 18, 2012

ज्ञान एक ताकत है
जिसके सहारे व्यक्ति
सदियों से चली आई अपनी गुलामी
या अपनी उस मानसिकता को
सर्वप्रथम समझ सकता है
और फिर उसका प्रतिरोध करने के लिए
खुद को सक्षम और हुनरमंद बना सकता है

ज्ञान एक स्वाभिमान है ब
जो व्यक्ति को शिखर की ओर
देखने और खुद शिखर बन जाने
का हौसला देता है
उन्हें भी जिन्हें अबतक
समाज,व्यवस्था और इतिहास ने
धरती पर ठीक से खड़ा भी नहीं होने दिया

ज्ञान एक पूँजी है
जिसे व्यक्ति ताउम्र कमाता है
और जिसके लूटे जाने का अंदेशा भी नहीं होता
बल्कि  जिसके अधिकाधिक संवितरण में
उसका ढेर बढ़ता चला जाता है

ज्ञान व्यक्ति को
उसके समय और परिवेश को
समझने में उसकी मदद करता है

ज्ञान व्यक्ति को हल्का कर देता है
रुई के फाहे की तरह
जिसके सहारे वह
अनंत अंतरिक्ष में
अकुंठित और अकलुषित भाव से
तैर सकता है
किसी बेफिक्र परिंदे की मानिंद

अगर हमें अपने जीवन को
भरपूर जीना हो
तो खुद को जितना हो सके
उतना भारहीन रखना होगा
तभी हम वक्त के अथाह समंदर में
बिना डूबे अपने हिस्से की तैराकी
पूरी कर सकते हैं
और अपने मंजिल को छूने के लिए
बिना किसी हील-हुज्जत के
डूबने-डुबाने के खेल में पड़े बगैर
हम आगे बढ़ सकते हैं
बिना हाँफे ,बिना थके
कुछेक  को अपने साथ किए,अपने साथ रखे
तब मंज़िल से अधिक रास्तों का मंज़र
हमें आनंद देता है
और मंजिल का प्राप्त होना
सहसा हमें पता भी नहीं चलता

असल यात्रा तो यही है
ज्ञान की, बोधि‌ज्ञान की
जो हमें हमारे भीतर ही पूरी करनी होती है
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