Tuesday, April 8, 2014

तुलसीदास की कविताई का अपना महत्व है।अगर भक्तिकाल हिंदी साहित्य का स्वर्ण-युग है तो रामचरितमानस हिंदी मध्यकाल के भाषाई दुर्ग पर गढ़ित दूर से ही चमकता एक स्वर्ण-क्लश है। रामचरितमानस के साष्टांग रूपकत्व की चर्चा पूरे विश्व में की जाती है। राम के नायकत्व को तुलसी ने अपनी पूरी विनयशीलता के साथ प्रस्तुत किया है। किसी कवि के लिए यह बड़ी बात है कि उसके लिखे शब्द लोगों के लिए प्रार्थना  के बोल बन जाएं।   
इन पंक्तियों में राम के जन्म को किस विह्वलता और सहजता के साथ प्रस्तुत किया गया है!उनके जन्म के समय ही उनके चरित-नायकत्व को मानों स्थापित कर दिया गया हो!.... कौशल्या राम से अपने विराट रूप को तजकर शिशु रूप में आने की विनती कर रही हैं।मानों किसी स्त्री ने किसी देव को अपना शिशु बनाने का संकल्प साधा हो।  

माता पुनि बोली, सो मति डोली,तजहु तात ये रूपा
कीजै सिसु लीला,अति प्रिय सीला, यह सुख परम अनुपा 
सुनी वचन सुजाना, रोदन ठाना, होई बालक सुरभूपा..