Friday, October 24, 2014

पुस्तक समीक्षा


कविता संग्रह मैं सड़क हूं

कवि अर्पण कुमार

प्रकाशक बोधि प्रकाशन, जयपुर

मूल्य 75 रूपए

संभावनाशील कविताएं

उमेश चतुर्वेदी

कविताओं में चित्रों का संसार कोई नई बात नहीं है। लेकिन कविताओं को पढ़ते वक्त कूची के कमाल का आभास बहुत कम कविताओं के साथ ही हो पाता है। लेकिन अर्पण कुमार के ताजा संग्रह मैं सड़क हूं की कविताओं को पढ़ते हुए यह अनुभव बार-बार होता है। उनकी कविताओं में सड़क है, नदी है, स्त्री है, धूप है, कुआं है, चाकू है, खूंटी है..आम जिंदगी में रोजाना तकरीबन सबका इनसे राफ्ता पड़ता है..लेकिन इन चीजों से भी संवेदना इतनी गहरे तक जुड़ी हो सकती है...इसे एक संजीदा कवि ही देख सकता है...अर्पण इन्हें देखने और उनके जरिए दर्द और उदासी भरी संवेदनाओं को उकेरने में कामयाब हुए हैं। मैं सड़क हूं संग्रह में कुल तैंतीस कविताएं हैं। लेकिन उनमें बुढ़ापे में अकेली होती मां भी है, उनका अपना पटना शहर भी है..जिसे पीछे छोड़ आए हैं...जिनके साथ उनकी सुंदर और संजीदा स्मृतियां जुड़ी हैं..लेकिन अब लौटते वक्त उन्हें वह पुरानी उष्मा नहीं मिलती। शायद इसी के बाद उनकी कविता फूट पड़ती है आजकल मैं पटना जंक्शन पर नहीं उतर रहा हूं। अर्पण के इस संग्रह में पिता की कवि छवियां हैं। पेंशनयाफ्ता की जिंदगी जीते पिता हैं, आश्वस्त पिता हैं...असमय बूढ़े हो रहे पिता हैं...लेकिन सबसे मार्मिक कविता है साठवें बसंत में कालकवलित हो चुके पिता..यह कविता जिंदगी के एक अंतहीन गह्वर में छोड़ जाती है। अर्पण के इस संग्रह में एक कविता है मजिस्टर राम का शरणार्थी यह लंबी कविता आजादी के पैंसठ साल बाद भी गांवों की बदहाली और वहां पिछड़े रह गए कमजोर लोगों की शहरों में शरणार्थी की तरह जिंदगी गुजारने की मजबूरी को मार्मिक तरीके से उठाती है। इस कविता को पढ़ने के बाद जिंदगी और विकास के दावे तार-तार होते जाते हैं...इस संग्रह की एक कविता इन दिनों मौजूं बन पड़ी है...महानगर में एक कस्बाई लड़की। इस कविता की कुछ पंक्तियां बेहद संभावनाशील हैं-लक्ष्मण रेखा के पार /निकल पड़ी है वह/ अपने बड़े से जूड़े को कस/असीमित आकाश को/ अपने आंचल में समेटने..इस संग्रह की शीर्षक कविता है मैं सड़क हूंयह कविता नए बिंब खड़ी करती है और बिंबों के जरिए संभावना के नए वितान भी तैयार करती है-तुम मुझे बनाते हो/ और फिर रौंदते हो/ अपने पैरों के जूतों/ अपनी गाड़ियों के पहियों/ और अपनी तेज अंतहीन रफ्तार से..इन कविताओं को पढ़ने बाद लगता है कि अर्पण में काफी संभावनाएं हैं। कुल मिलाकर यह संग्रह बेहद पठनीय बन पड़ा है।

उमेश चतुर्वेदी

द्वारा जयप्रकाश, दूसरा तल, एफ-23 ए, निकट शिवमंदिर

कटवारिया सराय, नई दिल्ली-110016