Monday, July 25, 2016

भारमुक्त होने की अग्नि परीक्षा : अर्पण कुमार

                   भारमुक्त होने की अग्नि परीक्षा : अर्पण कुमार 

आजकल कलाई घड़ी पहननी छोड़ दी है। जेब से मोबाइल निकाल कर यथावश्यक समय देख लेता हूँ। कलाई  पर बँधी घड़ी भारी लगने लगी है। उंगलियों में पहने जानेवाली अंगूठियों को अलमारी के लॉकर का रास्ता दिखा दिया है। अपने पेट पर चढ़ गई और आगे की ओर लटक रही चर्बी को भी कहीं दूर भगा देना चाहता हूँ। समय कुसमय मन-मस्तिष्क पर पड़े रहनेवाले ऑफिस के बोझ से भी किनारा कर लेना चाहता हूँ। मान-सम्मान, पद-पैसा आदि के दबाव से मुक्त होकर ही ज़िंदगी के हल्केपन को महसूसा जा सकता है। आसान चीज़ों से छुटकारा ले लिया। जो चीज़ें हमें बाँधती हैं, अपना ग़ुलाम बनाती हैं और जिनकी गिरफ़्त से निकलना अक्सर दुष्कर होता है, असली अग्नि परीक्षा तो उन्हें विदा देने में है। क्या जाने पास होता हूँ कि फेल!