Friday, July 3, 2015

डायरी में दुनिया / अर्पण कुमार


डायरी में दुनिया/अर्पण कुमार
दि. 30जून 2015
यात्रा समाप्त।यात्रा डायरी का यह त्वरित संस्करण भी समाप्त।सोचता हूँ, इस डायरी लेखन को आगे भी चलाऊँ, 'डायरी में दुनिया' नाम से।कुछ अन्य नामों पर विचार करते हुए यहीं रुक पाया।....
दो सप्ताह से कुछ अधिक समय के बाद आज जयपुर स्थित अपने घर आना हुआ। फिर बैतलवा डाल पर।
...
पत्र-मंजूषा में कुछ पत्रिकाएँ और बिल दिखे। इसमें राजस्थान साहित्य अकादमी,उदयपुर की मासिक पत्रिका 'मधुमती' के जून 2015 का अंक भी दिखा।कुछ अंदाज़ा हुआ और पत्रिका पलटने पर वह अंदाज़ा सही स...ाबित हुआ।एक सिलसिले में लिखी मेरी एक लंबी प्रेम कविता 'जुड़े में अनकुम्हालाया फूल' प्रकाशित है।
विविध भारती पर कल्याण जी आनंद जी की संगीत यात्रा पर आधारित एक कार्यक्रम सुन रहा हूँ।कई पुराने,सुमधुर गीत पुनः सुनने को मिले।यात्रा में रेडियो सुनना हो नहीं पाया था।अरसे बाद इन नग़मों की मिसरी कानों में फिर घुली।
क्या खूब लगती हो...(धर्मात्मा)
'आसमान में उड़नेवाले,मिट्टी में मिल जाएगा'
'अपने हाथों में हवाओं को गिरफ़्तार न कर'
कल्याण जी को एक प्रयोगशील संगीतकार माना जाता है। उन्होंने फ़िल्मी संगीत को एक नई ऊंचाई और गरिमा दी।
इस युगल संगीतकार द्वारा रचे कुछ यादगार गीत और सुनने को मिले:-
'हम थे जिनके सहारे,वे हुए न हमारे'
'समझौता ग़मों से कर लो.../फिर मत गिरना ओ गिरनेवाले' (समझौता)
'मेरा जीवन कोरा कागज़ ...'
'दिल तो है दिल,दिल का ऐतबार क्या कीजे...'
'ओ साथी रे, तेरे बिना भी क्या जीना'
स्वर्गीय कल्याण जी को आनंद जी स्वभाविक रूप से बड़ा याद करते होंगे, सोचता हूँ,जोड़ी का टूटना कितना मार्मिक होता है!

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