तुम्हारे इस सवाल का क्या उत्तर दूँ
कि मैं आखिरी बार कब खुश हुआ
कि इस दुनिया में ऐसा क्या है
जिससे मैं सबसे अधिक भयभीत होता हूँ
तुम्हीं बताओ
क्या इन सवालों का कोई उत्तर हो सकता है
...................
क्या कहूँ कि
दुःख और सुख जब भी आते हैं एक साथ आते हैं
इसे यूँ भी समझो
कि मैं दुःख और सुख को अलग करने में यकीन नहीं रखता
ऐसे ही सफलता और असफलता भी
परस्पर अलग नहीं किए जा सकते
जिन अपनों के लिए जितना कुछ किया बदले में उनसे सिर्फ ताने ही मिले
ऐसे में दुःखी मन के साथ हम अपना कर्म और धर्म तो नहीं त्याग सकते .....
क्योंकि हमारे बेहतर किए का कहीं-न-कहीं कुछ अच्छे फल तो ज़रूर मिलेंगे
मगर हम हैं तो आखिर इंसान ही न
इतना तो स्वीकारना ही पड़ेगा मेरे दोस्त...
किसी और के लिए कुछ करने का जज्बा
अगर कम भी नहीं हुआ
तो किसी के लिए कुछ करने के दौरान
अब पहले की तरह संलिप्तता भी नहीं रही
कि मैं आखिरी बार कब खुश हुआ
कि इस दुनिया में ऐसा क्या है
जिससे मैं सबसे अधिक भयभीत होता हूँ
तुम्हीं बताओ
क्या इन सवालों का कोई उत्तर हो सकता है
...................
क्या कहूँ कि
दुःख और सुख जब भी आते हैं एक साथ आते हैं
इसे यूँ भी समझो
कि मैं दुःख और सुख को अलग करने में यकीन नहीं रखता
ऐसे ही सफलता और असफलता भी
परस्पर अलग नहीं किए जा सकते
जिन अपनों के लिए जितना कुछ किया बदले में उनसे सिर्फ ताने ही मिले
ऐसे में दुःखी मन के साथ हम अपना कर्म और धर्म तो नहीं त्याग सकते .....
क्योंकि हमारे बेहतर किए का कहीं-न-कहीं कुछ अच्छे फल तो ज़रूर मिलेंगे
मगर हम हैं तो आखिर इंसान ही न
इतना तो स्वीकारना ही पड़ेगा मेरे दोस्त...
किसी और के लिए कुछ करने का जज्बा
अगर कम भी नहीं हुआ
तो किसी के लिए कुछ करने के दौरान
अब पहले की तरह संलिप्तता भी नहीं रही
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