Sunday, June 24, 2012

आज एक और रविवार

आज एक और रविवार ।24 जून 2012 की इस गरमी में कमरे में बंद रहने के अलावा और क्या किया जा सकता है! बस वही कर रहा हूँ।
अकेला हूँ, खाना बनाना भी तो मशक्कत का काम है। देखिए कब उठना होता है!
कुछ डिब्बाबंद जूस से अबतक काम चल रहा है।
सुबह कॉफी बनाई थी।उसके बाद कुछ जूस।...
फ्रीज में चावल रख रखा है ।सोचता हूँ, उसको फ्राई करके पापी पेट की आग बुझाई जाए।वैसे भी घड़ी की सुईयाँ ढाई से उपर दिखा रही हैं। .....
गरमी के मौसम में दिन में बाहर निकलकर कुछ खाना भी कितना  मुश्किल काम है!
वैसे भी जयपुर में आजकल जहाँ मेरा निवास है,खाने-पीने की सुविधा और विविधता कम ही है।
दिल्ली की याद रह-रह कर आती है,जहाँ होम-डिलीवरी की सुविधा कई बार बड़ी राहतकारी साबित होती है।
वहाँ स्थानीय स्तर पर चल रहे ढाबों/रेस्टोरेंट आदि में इस तरह की सुविधाएं उपलब्ध हैं।जनसंख्या का घना घनत्व और बाहर के खाने को लेकर बढ़ता फैशन इस तरह के कुटीर सेवा उद्योग  को एक बूम ही दे रहा है।सेवा-प्रदाता और उपभोक्ता दोनों खुश।
दिनभर घूमकर आए हों और थक गए हों तो बस एक फोन घुमा दीजिए।खाना हाजिर। थकावट हुई है मगर बिना कुछ खाए-पीए नींद भी कहाँ से आएगी!
मेहमानों की संख्या बढ़ गई है तो कुछ घर में बना लीजिए और कुछ बाहर से मँगवा लीजिए। इस तरह रसोई की साझा सरकार महानगरों में चलाई जा रही है।
जयपुर अभी विकसित होता एक शहर है।परंपरा और आधुनिकता का एक मिश्रित रूप।महानगरों की राह पर दौड़ते इस शहर के अपने रंग हैं।हो सकता है इससे असुविधा हो मगर आपको ही शहर के रंग में रंगना होगा।
आखिर हर शहर का अपना मिजाज  होता है। बेशक हमें वे रंग पसंद न हों या फिर वे धीरे-धीरे पसंद आए।शहर हमें अपनाने में देर करता है और हम शहर को अपनाने में। बस हिसाब बराबर।मगर हिसाब की यह बराबरी करते-करते हम कब एक-दूसरे की ओर आकर्षित होने लगते हैं,यह हमें पता भी नहीं चलता। 
बेशक जयपुर दिल्ली नहीं है।मगर उसे दिल्ली होने की ज़रूरत भी कहाँ है।
अगर मुझे दिल्ली का मुखर्जी नगर या फिर पटना का गाँधी मैदान याद आता है तो मुझे स्वयं  बीच-बीच में वहाँ जाना होगा। विविधता के इन्हीं रंगों के आकर्षण में देशाटन होगा,अपनी जन्म-स्थली और कर्म-स्थली की ओर भी हम अपना रुख करेंगे।तभी तो इस देश की डोर  को हम हर दिशा में लेकर सोत्साह दौड़ सकते हैं।
खैर अभी यहीं तक...। फिलहाल तो रसोई की ओर ही रुख करने की ज़रूरत है।
बात भोजन से शुरू हुई थी। अब भोजन की व्यवस्था के निमित्त फिलहाल बात यहीं समाप्त भी कर रहा हूँ।
  

   

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