Tuesday, September 18, 2012

ज्ञान एक ताकत है
जिसके सहारे व्यक्ति
सदियों से चली आई अपनी गुलामी
या अपनी उस मानसिकता को
सर्वप्रथम समझ सकता है
और फिर उसका प्रतिरोध करने के लिए
खुद को सक्षम और हुनरमंद बना सकता है

ज्ञान एक स्वाभिमान है ब
जो व्यक्ति को शिखर की ओर
देखने और खुद शिखर बन जाने
का हौसला देता है
उन्हें भी जिन्हें अबतक
समाज,व्यवस्था और इतिहास ने
धरती पर ठीक से खड़ा भी नहीं होने दिया

ज्ञान एक पूँजी है
जिसे व्यक्ति ताउम्र कमाता है
और जिसके लूटे जाने का अंदेशा भी नहीं होता
बल्कि  जिसके अधिकाधिक संवितरण में
उसका ढेर बढ़ता चला जाता है

ज्ञान व्यक्ति को
उसके समय और परिवेश को
समझने में उसकी मदद करता है

ज्ञान व्यक्ति को हल्का कर देता है
रुई के फाहे की तरह
जिसके सहारे वह
अनंत अंतरिक्ष में
अकुंठित और अकलुषित भाव से
तैर सकता है
किसी बेफिक्र परिंदे की मानिंद

अगर हमें अपने जीवन को
भरपूर जीना हो
तो खुद को जितना हो सके
उतना भारहीन रखना होगा
तभी हम वक्त के अथाह समंदर में
बिना डूबे अपने हिस्से की तैराकी
पूरी कर सकते हैं
और अपने मंजिल को छूने के लिए
बिना किसी हील-हुज्जत के
डूबने-डुबाने के खेल में पड़े बगैर
हम आगे बढ़ सकते हैं
बिना हाँफे ,बिना थके
कुछेक  को अपने साथ किए,अपने साथ रखे
तब मंज़िल से अधिक रास्तों का मंज़र
हमें आनंद देता है
और मंजिल का प्राप्त होना
सहसा हमें पता भी नहीं चलता

असल यात्रा तो यही है
ज्ञान की, बोधि‌ज्ञान की
जो हमें हमारे भीतर ही पूरी करनी होती है
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