Friday, September 21, 2012

                                                           
     नदी
  
अर्पण कुमार


जटिल नहीं है
नदी की
चक्करदार,बिछलती देह
जटिल है
उसकी गोपन भाषा


मुश्किल नहीं है
नदी की केशराशि फैलाना
मुश्किल है
अपनी अधीर उँगलियों से
उसकी वेणी बनाना
धैर्यपूर्वक

पुरुषार्थ नहीं है
नदी को हासिल करना
पुरुषार्थ  है
नदी के साथ बहना
सँभालते हुए उसे
उबड़-खाबड़ पथ पर
होकर आत्मसंयत स्वयं भी

जरूरी नहीं है
नदी को चाँद कहना
जरूरी है
नदी में चाँद की तरह उतरना
गहरे,अनछुए,लिप्सारहित....
नहाते हुए
उसके जल को
अपनी रोशनी में

भ्रम नहीं है
नदी का दर्पण होना
भ्रम है 
उसमें बेमानी
अपना कोई प्रतिबिंब देखना
जिद में और बहुधा
झूठी शान में

दुष्कर नहीं है
नदी को समझना
दुष्कर है
उसे विश्वास में लेना
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