आचार्य रामचंद्र शुक्ल के प्रसिद्ध निबंध 'कविता क्या है?' का अंतिम खंड.....
कविता की आवश्यकता
मनुष्य के लिए कविता इतनी प्रयोजनीय वस्तु है कि संसार की सभ्य-असभ्य सभी जातियों में,किसी न किसी रूप में, पाई जाती है। चाहे इतिहास न हो,विज्ञान न हो,दर्शन न हो,पर कविता का प्रचार अवश्य रहेगा।बात यह है कि मनुष्य अपने ही व्यापारों का ऐसा सघन और जटिल मंडल बाँधता चला आ रहा है जिसके भीतर बँधा-बँधा वह शेष सृष्टि के साथ अपने हृदय का संबंध भूला-सा रहता है। इस परिस्थिति में मनुष्य को अपनी मनुष्यता खोने का डर बराबर रहता है। इसी से अंतःप्रकृति में मनुष्यता को समय-समय पर जगाते रहने के लिए कविता मनुष्य जाति के साथ लगी चली आ रही है और चली रहेगी। जानवरों को इसकी जरूरत नहीं।
कविता की आवश्यकता
मनुष्य के लिए कविता इतनी प्रयोजनीय वस्तु है कि संसार की सभ्य-असभ्य सभी जातियों में,किसी न किसी रूप में, पाई जाती है। चाहे इतिहास न हो,विज्ञान न हो,दर्शन न हो,पर कविता का प्रचार अवश्य रहेगा।बात यह है कि मनुष्य अपने ही व्यापारों का ऐसा सघन और जटिल मंडल बाँधता चला आ रहा है जिसके भीतर बँधा-बँधा वह शेष सृष्टि के साथ अपने हृदय का संबंध भूला-सा रहता है। इस परिस्थिति में मनुष्य को अपनी मनुष्यता खोने का डर बराबर रहता है। इसी से अंतःप्रकृति में मनुष्यता को समय-समय पर जगाते रहने के लिए कविता मनुष्य जाति के साथ लगी चली आ रही है और चली रहेगी। जानवरों को इसकी जरूरत नहीं।
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